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ये संसार भी अजीब है,
जब कोई इंसान माया,मोह,छल,कपट,
नफरत,घृणा,आडम्बर
से थक
सत्य की खोज में निकलता है,
अपने सारे सुख,सुविधाओं को छोड़,
जंगल,जंगल भटकता है,
जानना चाहता है कि वह कैसा भगवान,
जो इंसान से इंसान को लड़ाता है,
किसी को नीच तो किसी को महान बनाता है,
हम कालान्तर में,
उसके सोंच को अपनाने के बदले,
उसे भी भगवान बना देते हैं,
त्याग किया सुख,सुविधा का जीवनपर्यंत उसे,
मरने के बाद में धनवान बना देते हैं
ये संसार अजीब है,
धर्म बदलते रहे,भगवान बदलते रहे,
मगर छल,कपट और नफरत में
हम जीवनपर्यन्त जलते रहे।
!!!मधुसूदन!!!
Ye Sansaar bhee ajeeb hai,
jab koee insaan maaya,moh,chhal,kapat,
napharat,ghrna,aadambar
se thak
saty kee khoj mein nikalata hai,
apane saare sukh,suvidhaon ko chhod,
jangal,jangal bhatakata hai,
jaanana chaahata hai ki vah kaisa bhagavaan hai
jo insaan se insaan ko ladaata hai,
kisee ko neech to kisee ko mahaan banaata hai,
kaalaantar mein,
ham usake sonch ko apanaane ke badale,
use bhee bhagavaan bana dete hain,
sukh,suvidha ka tyaag kiya jeevanaparyant use,
marane ke baad mein dhanavaan bana dete hain
ye sansaar bhee ajeeb hai,
ham dharm badalate rahe,bhagavaan badalate rahe,
magar chhal,kapat aur napharat mein
jeevanaparyant jalate rahe.
!!!Madhusudan!!!
सत्य वचन
जीवित जिज्ञासा
निकट सागर
और मन पिपासा
सुंदर विचार उत्कृष्ट लेखनी
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सुक्रिया भाई आपने पसन्द किया और सराहा साथ ही खूबसूरत पंक्तियों के लिए।
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भगवान ने तो स्वतंत्रता दे रखी है, मनुष्य पर है वह इस स्वछंदता का उपयोग कैसे करे!
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Agar maarna hi tha toh banaaya hi kyu bhai bhagawan ne Hume, aur jinka koi existence hi na tha.. unhe banaake unke ache ya bure karmo ke hisaab se Swarg ya nark Ko bhejnewaale ko aur khudki puja karwaaneko kyu banaya🙁 Sach ki talaash karne niklo toh ye guru’s Sab foundations ya organisations kholrakhe hei. Jaha har ek ka kisi aur Guru ke teachings different hote hei
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ये बहुत जटिल विषय है और विवादास्पद भी! फिर भी भगवत गीता को साक्ष्य में रखकर मोटा मोटी जो समझ में आया, अपना पक्ष प्रस्तुत करूँगा!
1. गीता के हिसाब से हम आत्मा हैं, और मरते नहीं हैं
2. आपको भगवान ने कब उनकी पुजा करने पर विवश किया? आप तो स्वच्छंद हो!
3. गीता में बताया गया है कि आध्यात्मिक ज्ञान के लिए गुरु की आवश्यकता होती है, पर जो लोग बाबाओं द्वारा ठगे जाते हैं वे सत्य की खोज के लिए गए ही कब थे? गये थे धन, नौकरी या अन्य भौतिक समस्याओं को लेकर!
सत्य की खोज करना इतना भी सरल नहीं!
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1. Aatma hei toh bhi banaaya kyu. Dard toh hota hei na Hume
2. Bhagwan ne toh nhi kaha magar, Maa aur Papa aur Panditji kehte hei ki bhagwad Gita mei likha hei ke bhagwan Ko maanna aur puja karna Zaroori hei..hum jawaab ki talaash mei isckon teachings mei bhi Gaye Magar unke bhi jawabon se satisfied nhi hue .
3.bhaiyya aap kahiye na fir satya ki talaash kaha karrein
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It’s deep spiritual questions.. I don’t think so this platform is appropriate to answer these questions. Madhusudan bhai bhi soch rahe honge kya chal raha hai yahan 🙂
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Madhusudan ji likhte hi itne ache hei ke unka har lafz dilse samajhmei aata hei..aur hei toh Ajnabee Magar Apne hi toh hei sab aur umr mei aap humse bade hei toh zindagi ka tajurba bhi toh zyaada hoga na.. isiliye poochrahe the. Comments section isiliye hi toh hota hei jisme post kiye Gaye topic ke baareme baat karein. Toh Madhusudan ji aap Bura toh nhi maanenge na?
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हा हा हा।सही कहा।कितना बड़ा संसार के छोटे से टीले समान धरती के कितने तुक्ष हम इंसान के लिए उस ऊपरवाले को जानना इतना आसान नहीं।सत्य से धरती पर आकर भगवान राम,कृष्ण,बुद्ध और महावीर हमें अवगत कराया। उनका भव्य मंदिर मन्दिर तो बना डाला मगर उनके विचारों को दिल मे नही बसा सका।सुक्रिया अपने खूबसूरत तर्क से हमें अवगत कराने के लिए।
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साहब हम तो प्रेम मार्ग के पथिक हैं,तर्क क्या जानें☺
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वाह।
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बस इसी तरह का सवाल गौतम बुद्ध के मन मे जगह बना लिया था।अपने राज पाट, सुख सुविधा का त्याग कर तब के गुरुओं से मिलते रहे यहां वहां भटकते रहे मगर कोई उन्हें सन्तुष्ट नही कर पाया।अंत में एक के वृक्ष नीचे बैठ ध्यानमग्न हो गए जिसे आज बोद्धिवृक्ष कहते हैं।भूख से शरीर सूखता गया,शरीर निष्प्राण होने लगा मगर भगवान नहीं आये। कहते हैं उन्हें वही ज्ञान हुआ कि वीणा के तार को उतना ही खींचो जिससे मधुर ध्वनि निकल सके।ज्यादा खींचोगे टूट जाएगा। जिंदगी वीणा के तार के समान है।कोई नीच नही कोई महान नहीं।इंसान क्या जानवर भी प्रेंम के भूखे हैं।सबसे प्रेम करो।अहिंसा ही परम् धर्म है।भगवान कृष्ण ने भी प्रेम और त्याग ही सिखलाया।भगवान राम भी पूरा जीवन त्याग और सभी से प्रेम करना ही सिखलाते रहे।मगर हम उन सब के विचारों को भूल एक दूसरे में नफरत फैलाते रहे।
धर्म बनते गए
मगर हम ना कल बदले ना आज।
माँ पिता से पहचान कराती है, हम नहीं जानते कि वही मेरे पिता हैं मग़र माँ के कहने पर मान लेते हैं।भरोशा है तो भगवान भी हैं ।मगर आडम्बर में कहीं खो से गये हैं हम और भगवान भी।
मृत्युलोक का कुछ नियम है जिससे हम भी बंधे हैं और भगवान भी। वे रोज हमारे सामने आते हैं असहाय के रूप में दीन के रूप में भूखे और प्यासे के रूप में मगर हम उन्हें वैभव में ढूंढते हैं।
देखा जाए तो हममे भी है रब और एक छोटे जीव में भी।मगर हमने अपने हिसाब से धर्म बना दिया।
प्रत्येक जीवों से प्रेम करें यही सबसे बड़ा धर्म है और इसी में परम् आनंद भी।ये मेरा मानना है।
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Dhanyavad Madhusudan ji, Koshish ham bhi kar rahe hei sahi dishaa mei aur sahi guru se seekhneki..magar waqt hi toh nhi milta student life mei
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हमारे समझ से कहीं सीखने की जरूरत ही नहीं।जितना प्रेम और दया दिल मे समायेगा उतना रब नजदीक आएंगे। ये मेरा मानना है अमोघ भाई।सुक्रिया आपने मेरी कविता पसन्द की और खूबसूरत प्रतिक्रिया व्यक्त किया।
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Beautiful poem!! It’s all about us how we can make good out bad and bad out of good. Jealousy, playing games etc of all are put aside will lead to liberalisation of soul!!
Beautiful poem as always
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Thank you very much for your valuable comments.
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👏👏👌
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🙏🙏
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Bahut sunder.
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धन्यवाद आपका।
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Very well said sir…totally agreed here
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Thanks for your valuable comments.
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Waah!
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sukriya apka.
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सत्य कथन, सुख पाने की लालसा और दूसरों को सुखी देख ईर्ष्या का भाव ही जीव को इतना नीचे गिरा देता है कि अपनी छोटी सोच के अनुसार ही वो भगवान के भी रूप को बदल बदल के देखता रहता है। यही है संसार…
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सुक्रिया भाई आपने पसन्द किया और सराहा।
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बहुत खूब।
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sukriya apka.
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Sahi farmaya aapne.
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Dhanyawad apka.
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