Image credit : Google जब तक दूध के दाँत थे मुख में फर्क नहीं जाना, ऊँच-नीच क्या जाति-धर्म सब अब है पहचाना। आज समझ में आया बचपन, में ही दुनियाँ सारी थी, छोटा सा खलिहान खेल की, जन्नत,जान हमारी थी, असलम,मुन्ना,कलुआ,अंजू, मंजू सखा हमारी थी, बिन बैठे एक साथ चैन ना, रातें भी अंधियारी थी, … Continue reading Dudh ka dant
Category: Jiwan dhara
Quotes…27
कल रोते तो आँसूं नजर आते थे अब तो दर्द में भी मुस्कुरा जाते हैं मिल लिया करते कल जब भी इच्छा होती, अब तो सपने भी पीछा छुड़ा जाते हैं, जिंदगी है कल कच्चे थे टूटकर भी जुड़ जाते थे, मगर अब टूटने पर कहाँ जुड़ पाते हैं। !!!मधुसूदन!!! kal rote to aansoon najar … Continue reading Quotes…27
Madiraalay/मदिरालय
Image Credit: Google हम सब शराबी,दुनियाँ एक मयखाना है, किसी को नशा किसी को नशे का बहाना है, वैसे तो दो घुट पीनेवाले,पीकर बहक जाते हैं, देखते ही देखते कुछ के जाम बदल जाते है, गिरते हैं खुद ही लड़खड़ाकर मयखाने में जश्ने संसार मय को, दोषी बना जाते है, जश्ने संसार मय को, दोषी … Continue reading Madiraalay/मदिरालय
Nariyan/नारियाँ
Image Credit: Google नारियाँ,नारियाँ,नारियाँ, हम पुरुषों की मस्तक की ताज है नारियाँ, कल भी और आज भी, किसी के लिये खेल समान है नारियाँ, कल भी और आज भी। नारी स्वाभिमान के लिए पुरुष अपनी जान भी गवाँ देता, जीते जी कभी उसपर आँच नही आने देता, इसी त्याग को देख उसे मस्तक पर सजाती … Continue reading Nariyan/नारियाँ
Jajbaa/जज्बा
Images credit: Google पाँवों में बेड़ियाँ, हाथों में फाँस, हाय रे बिधाता तेरा कैसा इन्साफ, हाय रे बिधाता तेरा कैसा इन्साफ| बचपन में बोझ दिया, बच्चे जब खेलते, अरमाँ हमारे पहाड़ों को झेलते, चीथड़ों में सिमटी है अपनी लिबास, हाय रे बिधाता तेरा कैसा इन्साफ|२ पाँव मेरे जिस दिन घर से निकलते, चूल्हा उसी दिन … Continue reading Jajbaa/जज्बा
Jindgi/जिंदगी
कलकल बहता पानी, स्थिर मोह लिया मन मेरा, सुदबुध खो बैठे, थे तुम बहते पानी जैसे, तेरे हो बैठे।। कल तक हम थे बृक्ष सामान, फिर भी भरा हुआ अभिमान, कितने आँधी बनकर आये, फिर भी हमें डिगा ना पाये, हम थे जड़वत सील के जैसे, विश्वामित्र भी कह लो वैसे, फिर तूँ पास मेनका … Continue reading Jindgi/जिंदगी
Bhatkata Dharmo me Insaan
डाल बदला है तू पर तना है वही, घर बनाया नया, पर घराना वही, कैसी गफलत में हैं फिर भी सारे,तेरे पूर्वज वही जो हमारे। याद कर जंगली थे कभी हम सभी, जानवर की तरह लड़ रहे थे कभी, जीव-जंतु, नदी, बृक्ष, पर्वत, हवा, रब दिया स्वर्ग सी खूबसूरत धरा, मुर्ख थे खुद की मैयत … Continue reading Bhatkata Dharmo me Insaan