Sathi Re

Click here to read part..1

जब रूठा तू मुझे मनाती,
गिरता जब भी मुझे उठाती,
टूट गया तूँ छोड़ गई,कैसे खुद को समझाऊँ,
बोल बता अब मेरे साथी, कैसे उम्र बिताऊं।

जीवन से लड़ते मैं आया,
हार कभी ना माना था,
तेरे कारण ही सागर से,
बचकर वापस आया था,
घर आने की चाहत कलतक,
ख्वाब गजब की होती थी,
हाथों का तुम हार बनाती,
गर्दन झुकती मेरी थी,
यादों की फेहरिस्त बड़ी,
हर याद में तू ही छाई,
ऐसी कौन खुशी है जिसमे,
तुम बिन खुशियां आई,
गम कैसा ना कलतक जाना,
दर्द को बिन बोले पहचाना,
कहां गई तुम छोड़ के मुश्किल,
सत्तर से आगे अब जाना,
बादल बरस रहे हैं संग-संग,कैसे हाल सुनाऊँ,
बोल बता अब मेरे साथी, कैसे उम्र बिताऊं।

दिन तो कटते इधर-उधर,
रातों को अजब सन्नाटा है,
आज भी तेरी बिस्तर साथी,
तेरी याद दिलाता है,
बिन बोले तुम चली गई,
बिन बोले अब मैं रोता हूँ,
कहाँ गई तूँ देख जरा,
अश्कों में दर्द पिरोता हूँ,
दीप बिना बाती,बाती बिन कैसे दीप जलाऊँ,
बोल बता अब मेरे साथी, कैसे उम्र बिताऊं।

घर मे सारे लोग मगर,
कोई ना साथ हमारे,
अपने-अपने काम मे उलझे,
नाती-पोता सारे,
हम भी हैं इंसान मगर,
हैं मूक आज पशुओं सा,
हवा के जैसे चलनेवाले,
कैद वहां पशुओं सा,
भोजन अच्छे मगर बैल सा,
मुझको मिलता साथी,
किससे दिल की बात करें हम,
कौन हमारा साथी,
अपनो की खुशियों से खुश,मुश्कान कहां से लाऊं,
बोल बता अब मेरे साथी, कैसे उम्र बिताऊं।

!!! मधुसूदन !!!

25 thoughts on “Sathi Re

Leave a comment