Nasha vikas ka

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छोटे घर में चैन सुकूँ,सच दम बिल्डिंग में घुटता है,
आसमान में रहता एक दिन धरती पर ही गिरता है|
एक समय घर अपना छोटा,
माँ धरती के आँचल में,
आज हुए हम विकसित छूते,
आसमान के बादल में,
कल तक सूरज,चाँद दिखाई,
देता घर के आँगन से,
शुद्ध हवा के झोके छूकर,
जाते घर के आँगन से,
आज तरसते बड़े घरों में,
चन्दा, सूरज दूर हुए,
शुद्ध हवा बिन दम घुटता है,
विकसित मद में चूर हुए,
आसमान को छूती बिल्डिंग,
आस-पास में जगह नहीं,
बृक्ष का दुश्मन हम बन बैठे,
हरियाली को जगह नहीं,
मद में हैं सब चूर नशा,एक दिन मिटटी में मिलता है,
आसमान में रहता एक दिन धरती पर ही गिरता है|

कहां गया वह घर अपना,
जिसके आंगन में जन्नत थी,
कहाँ गए वह बाग बगीचे,
जिसमे यादें बचपन की,
खिड़की खोलूं तो मुश्काती,
पिछवाड़े एक बगिया थी,
द्वार पर खुशबू लिए हुए,
उड़हुल फूलों की डलियां थी,
आज नही वह बाग बगीचे,
ना उड़हुल की डाली है,
छत के ऊपर छत है,
विकसित हो गई दुनियाँ सारी है,
मुफ्त हवा,पानी और धुप,
हमको रास नहीं आती,
विकसित हम इंसान बने,
धरती अब रास नहीं आती,
वापस एक दिन आना होगा,ऐ विकसित दम घुटता है,
छोटे घर में चैन सुकूँ,सच दम बिल्डिंग में घुटता है,
आसमान में रहता एक दिन धरती पर ही गिरता है|

!!! मधुसूदन !!!

25 thoughts on “Nasha vikas ka

  1. Waah!man tript ho gya hai,
    Aapki kavita bahut acchi hai.
    Meri bhi iss topics pe kavita likhne ki tamnna hai,
    Shaayad nikat future main ek kavita kuchh alag binduo ko lekar likhoongaaa!!

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  2. Waah!
    मुफ्त हवा,पानी और धुप,
    हमको रास नहीं आती,
    विकसित हम इंसान बने,
    धरती अब रास नहीं आती…… Khoob kahi

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