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है राह कठिन पर सत्य प्रबल,पर्वत भी शीश झुकाता है,
इंसान चला गर सत्य के पथ,रब बेबस चलकर आता है।
ब्रम्हा से वर को प्राप्त किया,
एक राजा नाम हिरणकश्यपु
जनता के बीच उद्घोष किया,
खुद को ही मान लिया स्वयंभू,
जन-जन उसको भगवान कहे,
आह्लादित वह शैतान हुआ,
था झूठ की दुनियाँ में अंधा,
वह सत्य से फिर अनजान हुआ,
प्रहलाद हुआ उसका बेटा,
कुम्हार यहां अचरज देखा,
जलती भट्टी से बिल्ली के,
जिंदा वापस बच्चे देखा,
श्रीहरि का देखा नाम प्रबल,विष्णु का रटन लगाता है,
इंसान चला गर सत्य के पथ,रब बेबस चलकर आता है।
मुख विष्णु धुन प्रहलाद से सुन,
वह पुत्र को समझाकर हारा
फिर दंड दिया कितने कठोर,
हर बार उसे वह हत्यारा,
अस्तबल में बांधा घोड़े संग,
हाथी के संग भी बंधवाया,
पर्वत से फेका पुत्र मगर,
वापस जिंदा उसको पाया,
ना उसे डुबाया सागर ने,
ना विषधर से ही…
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Sir your all blog’s are very nice।
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Thank you very much for like my blog.
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कविता की तरह इसे बड़ा अच्छा लगा। 👌👌
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खुशी हुई। आपका अच्छा लगना ही हमारा पुरस्कार है।
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आपका नम्बर मिल सकता है क्या कुछ रचनाओं को लेकर बात करनी है जो वर्डप्रेस पर नहीं हो सकता है।
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Apna email.id dijiye….Us par bhej deta hun.
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Rajaniajeetsingh@gmail.com
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