Insan aur Singhashan (Part..2)

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मैं एक अदना सा इंसान,
सदियों से मेरी एक उलझन,रोटी,कपड़ा और मकान,
मैं एक अदना सा इंसान।

कर देकर भी मुक्त हुए ना,
हम सब पहली बार,
कोड़ों की बरसात हुई थी,
हम पर पहली बार,
नंदबंश का राजा था वह,
धनानंद था नाम,
मानव को मानव ना समझा,
मुश्किल में था प्राण,
धरती पर कोहराम मचा था,
नरभक्षी सम्राट बना था,
कर से चैन नही था उसको,
स्वार्थबेदी कई गाँव चढ़ा था,
पिता मृत्युबस जुल्म का मारा,
अदना एक चाणक्य बेचारा,
खोल जटा प्रण की थी भारी,
नंदबंश का अंत की ठानी,
पर्वत दूजा तृण समान,फिर भी लड़ता एक इंसान।
सदियों से मेरी एक उलझन,रोटी,कपड़ा और मकान।

दूजा शासक नाम अशोक,
छल कर क्रूर बनाये लोग,
दिल में प्रेम का सागर जिसका,
छल ने सिखलाया प्रतिशोध,
बचपन से जो सबका रक्षक,
सत्ता मद बन बैठा भक्षक,
लाल धरा फिर खंजर लाल,
चारो ओर थी चीख पुकार,
ठंढा जब प्रतिशोध हुआ तब,
छूट गई उसकी तलवार,
बौद्ध धर्म का बना समर्थक,
सत्य,अहिंसा प्राण से बढ़कर,
जब-जब सत्ता सिर चढ़ जाता,
हाथ मे सज जाती तलवार,
सीमा का बिस्तार में पागल,
सिंघासन का पहरेदार,
तब-तब खून का आंसू रोता,हम जैसा अदना इंसान,
सदियों से बस मेरी उलझन,रोटी,कपड़ा और मकान।
मैं एक अदना सा इंसान।

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!!! मधुसूदन !!!

16 thoughts on “Insan aur Singhashan (Part..2)

  1. वाह वाह दा। इस इंसान की तो इक के बाद इक कड़ी जुड़ती जा रही हैं ।

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  2. बिलकुल सही !! समय या शासन जो भी हो, जन सामान्य की कहानी तो बस यही है –

    सदियों से बस मेरी उलझन,रोटी,कपड़ा और मकान।
    मैं एक अदना सा इंसान।

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